निर्मला पुतुल एक ऐसी कवयित्री हैं, जो संथाल परगना के आदिवासी परिवार में जन्मी हैं। उनकी कॉलेज की शिक्षा नहीं हो पाई लेकिन उन्होंने जीवन की किताब खुली आँखों से पढ़ी है। खासकर अपने आसपास की स्त्रियों के सुख-दुःख को उन्होंने साझा किया है।
पंचायत राज अधिनियम में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई, लेकिन महिला पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा अपना दायित्व निभाने में बाधा उत्पन्न करने वालों पर कार्रवाई का कोई प्रावधान इसमें नहीं है।
उपरोक्त बैनर बीसवीं सदी के न्यूयॉर्क में मताधिकार के संबंध में स्त्रियों की गैर बराबरी की स्थिति पर व्यंग्य है, 'न्यूयॉर्क राज्य अपराधियों, विक्षिप्तों, मूर्खों और महिलाओं को मताधिकार देने से इंकार करता है
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के कई प्रावधान भी उत्पीड़ित महिलाओं के हितार्थ हैं। दहेज हत्या, आत्महत्या या अन्य प्रकार के अपराधों में महिला के 'मरणासन्न कथन' दर्ज किए जाते हैं
पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार
पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। लेकिन
लिंगानुपात में इतना असंतुलन आता जा रहा है कि सरकार ने अब सड़कों पर यह बोर्ड लगाने शुरू कर दिए हैं- जब एक महिला के होंगे पति चार/ तब कहाँ मिलेगा पत्नी का प्यार। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुख
अंतिम संस्कार औरत नहीं कर सकती है। यह तथ्य मौजूदा सदी में अव्यावहारिक परंपरा मानी जा सकती है। भारतीय संस्कृति में किसी की मौत होने पर उसको मुखाग्नि मृतक का बेटा/भाई/ भतीजा/पति या पिता ही देता है
बलात्कार यानी बल के बूते पर किया हुआ कार्य। यह एक ऐसा अनुभव है, जो पीड़िता के जीवन की बुनियाद को हिलाकर रख देता है। दुःखद बात यह है कि यह एक ऐसा अपराध है, जहाँ कालिख बलात्कारी के बजाय उस नारी के माथे पर लग जाती है।